Media Gallery
घर से स्कूल, फिर ट्यूशन और हॉबी क्लासेज — कहीं खो तो नहीं गया बचपन????
“बचपन मत छीनिए… उड़ान भरने दीजिए!”
“किताबों से आगे भी एक दुनिया है – उसे बच्चों को जीने दीजिए।”
“टाइमटेबल में खेल की भी एक घंटी होनी चाहिए…”
“बचपन को कैद मत कीजिए — ये उम्र दोबारा नहीं आती।”
मिस प्रितिया, हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट, प्री प्राइमरी विंग, आधारशिला स्कूल अबोहर
आज का बच्चा दिन की शुरुआत स्कूल से करता है, फिर दौड़ता है ट्यूशन, और फिर किसी न किसी एक्टिविटी क्लास में शामिल हो जाता है। पढ़ाई, परफॉर्मेंस, कॉम्पिटिशन – हर कदम पर एक अनदेखा दबाव।
वो नंगे पैर भागते दिन, वो बिना वजह की हंसी, मिट्टी से सने हाथ, और पार्क में खेलते हुए बिताए लम्हें — अब कहीं नजर नहीं आते। बच्चों के चेहरे पर हँसी कम और तनाव की लकीरें ज़्यादा दिखती हैं।
क्या पढ़ाई ही सब कुछ है???
बिलकुल नहीं।
बचपन सिर्फ पढ़ने का नहीं, जीने का नाम है। हर बच्चा एक कली है, जिसे खिलने के लिए सूरज की नहीं, मुस्कान और आज़ादी की ज़रूरत होती है। यह कहना है आधारशिला स्कूल के प्री प्राइमरी विंग के हेड ऑफ डिपार्टमेंट प्रितिया मैम
का... उन्होंने शिक्षकों और अभिभावकों से निवेदन किया कि बच्चों पर पढ़ाई का बोझ इतना ना डालें कि वे हँसना ही भूल जाएं। पढ़ाई के साथ-साथ खेल, मस्ती, और बेफिक्री भी जरूरी है। हर बच्चे को अपना बचपन पूरा जीने का हक है।
बच्चों की दिनचर्या में फ्री टाइम, ओपन-एयर गेम्स, और परिवार के साथ वक्त भी शामिल करें।
याद रखिए — किताबें तो ज़िंदगी सिखा देंगी, लेकिन बचपन दोबारा नहीं मिलेगा। क्योंकि अगर बचपन ही मर गया, तो बचा क्या? अगर हमने उनकी मुस्कान छीन ली, तो फिर हम भी किसी हद तक उनके बचपन के हत्यारे हैं। अब भी वक्त है — बचपन को बचाइए, बच्चों को आज़ाद उड़ने दीजिए।